Wednesday, 27 April 2011

ब्रज के जनजीवन में गाय


ब्रज के जनजीवन में गाय


ब्रज के जनजीवन में गाय का जैसा स्थान है, वैसा किसी अन्य पालतू पशु का नहीं है। गाय एक उपयोगी पशु मात्र नहीं है, वरन् ब्रज संस्कृति का एक प्रकार से प्रमुख आधार ही है। भगवान् श्री कृष्ण गायों की सेवा करने के कारण ही गोपाल और गोविंद कहे जाते हैं। ब्रज में इस पशु को जो अनुपम गौरव दिया गया है, उसका कारण वस्तुत: इसका अतिशय उपयोग ही है। ब्रज में बहुत बड़ी संख्या में सदियों से गायों को पाला जाता रहा है। भगवान् कृष्ण के समय में गिरिराज पहाड़ी प्रमुख गौचरण का केन्द्र थी। इसीलिए इस गोवर्धन का विरुद प्राप्त हो सका है। ब्रजवाले गोपों का समस्त जीवन ही गौवंश पर आधारित था। वे इससे दूध, दही, मक्खन जैसे पौष्टिक पदार्थों के प्राप्त करते थे उसके गोबर और मूत्र से जो खाद निर्मित करते थे, वह उनके खेत की उपज के बढ़ाने में उपयोगी होता था। गाय से उत्पन्न बछड़े होकर हल हल खीचतें थे, माल ढोते थे। इस प्रकार गाय ब्रजवासियों के जीवन का आवश्यक अंग ही नहीं, उनके परिवार का प्रमुख सदस्य ही बन गई थी।
प्रागैतिहासिक काल से गाय की उत्तरजीवितता पर प्रकाश प्रस्तुत किया जाय तो भारत की प्राचीनतम हड़प्पा (र्तृन्धव) सभ्यता के नगरीय और महानगरीय पुरास्थलों से मृत्य मूर्तियों के रुप में अनल्प प्रमाण पाये गये हैं। सैन्ध निवासी कूबड़ वाले साँड की पूजा करते थे और बैलों के द्वारा बैलगाड़ी जोतते थे।
भारत की आर्य संस्कृति के संस्थापक ॠग्वैदिक आर्यों के जीवन में तो गाय का अत्याधिक महत्व था। आर्य संस्कृति का 'चरवाहा' संस्कृति के रुप में भी जाना जाता है, क्योंकि आर्य लोग जंगलों में गोचारण करते थे तथा गायों के साथ जंगलों में ही निवास करते थे। जहाँ अच्छे चराहगाह होते थे उस भूमि के लिये आर्य कबीलों में प्राय: संघर्ष होते थे, अधिक से अधिक गाय प्राप्त करने के लिये युद्ध होते थे। वैदिक काल में आर्थिक हैसियत का निर्धारण गायों की संख्या से लगाया जाता था अधिक गायें, जिस कबीले के पास होती थी वह उतना ही सम्पत्ति शाली माना जाता था।
उत्तरवैदिक काल में आते-आते गाय का बहुउद्देशीय उपयोग मनुष्य की समझ में आ गया था। बछड़े को जन्म देनेवाली गाय को पूज्य माना जाता था क्योंकि बछड़ा बड़ा होकर बैल बनकर भूमि को जोतने के काम में आता था। उस समय में भूमि की कोई कमी नहीं थी जनसंख्या कम थी और भूमि की मात्रा अधिक थी किन्तु भूमि का अधिकांश भाग घने जंगलों से आच्छादित था। उत्तर वैदिक काल में लोहे के इस्तमाल से जंगलों को काटा गया और उस भूमि को लोहे के फाल लगे हल से बैलों के माध्यम से जोता गया तथा कृषि उपयोगी बनाया गया। शतपथ ब्राह्मण और पंचविश ब्राह्मण ग्रन्थों में वर्णन है कि एक ही हल को बीस-बीस बैल खींचते थे। वैदिक काल में पृथ्वी के दोहन के लिये अधिकाधिक पुरुषों और बैलों की आवश्यकता महसूस की गई। अत: अधिक से अधिक पुत्र जन्म देने वाली स्री और अधिक से अधिक बछड़ों को जन्म देने वाली गाय को पूज्य घोषित किया गया तथा गाय की हत्या को शक्ति से प्रतिबंधित कर दिया गया।
छठवीं शताब्दी ई० पू० में जैन और बौद्ध धर्म के संस्थापकों ने गौहत्या को पूर्णत: बन्द करा दिया तथा जीवहत्या को धर्म विरुद्ध घोषित करार दिया और गाय को और उसके वंश को पूर्णत: सरक्षण देते हुए मनुष्य जीवन के लिये उपयोगी बताया जिससे गाय के प्रति भारतीय जनमानष में श्रद्धा संचार का सृजन हो सका।
गाय की इस अनुपम उपयोगिता न ही इसे धर्म में स्थान के दिया है। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार यह समस्त भूमंडल ही गाय के सींग पर टिका हुआ है। इसका बुद्धिगम्य अर्थ यह हुआ कि सांसारिक जीवन का बहुत कुछ आधार गाय पर है। हमारी भारतीय संस्कृति की यह विशेषता है, कि जो नियम और बाते मानव-जीवन के लिये हितकर ज्ञात हुई, उन्हें धार्मिक रुप प्रदान कर संरक्षित कर दिया गया। इससे उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति की भावना भी जुड़ गई है।
ब्रज के जन जीवन में गाय का जो महत्वपूर्ण स्थान रहा है, उसके कारण वह यहाँ की धार्मिक भावना में से अत्यन्त निकट का संबंध रखती है। ब्रज के धर्मायार्थ और भक्त जनों ने गाय के प्रति अपनी भक्ति-भावना को बड़े ही मार्मिक शब्दों में व्यक्त किया है। साधारण मुसलमानों में भले ही गाय के प्रति ऐसा दृष्टिकोण न रहा हो, किन्तु जिन सहृदय मुसलमानों ने ब्रज की भक्ति-भावना को स्वीकार कर लिया था, वे गाय के प्रति हिंदुओं से कम श्रद्धावान नहीं थे। भक्तवर रसखान की कामना थी कि यदि आगामी योनि में उन्हें मानव की देह प्राप्त हो, तो ब्रज के गोकुल के ग्वालाओं के साथ रहने का ही उन्हें सुयोग मिले। यदि किसी प्रकार पशु होनो पड़े, तो फिर नंद की गायों के साथ चरने का सौभाग्य प्राप्त हो सके। उन्होंने कहा है-

   मानुष हों तो वही रसखान, बसों मिल गोकुल गाँव के ग्वारन।
   जो पशु हों तो कहा बस मेरौ, चरौ नित नंद की धेनु मँझारन३।।


ब्रज के जनजीवन में गाय

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